फियर फाइल्स: डर की सच्ची तसवीरें
Emotionsआज बात करते हैं ज़ी टीवी पर आने वाले शो ‘फियर फ़ाइल्स’ की।
यह शो ‘ज़ी हॉरर शो’ और ‘अनहोनी’ जैसे सुपरहिट हॉरर धारावाहिकों के कई साल बाद, एक काफ़ी लंबे अंतराल के बाद आया था।
और आते ही इसने लोगों के दिलों में वही पुरानी उमंग जगा दी थी—जैसी कभी उन दिनों ‘ज़ी हॉरर शो’ देखने पर जागती थी।
अगर ये शो हमारे बचपन या हमारी टीनएज का हिस्सा नहीं होते,
तो शायद हमारे बचपन और हमारी टीनएज के पल इतने यादगार न बन पाते।
‘ज़ी हॉरर शो’ को रामसे ब्रदर्स लेकर आए थे—
या यूँ कहें कि भारतीय टेलीविज़न और सिनेमा जगत में
हॉरर जॉनर की नींव रखने वालों में वही थे।
काफ़ी अंतराल के बाद ज़ी टीवी एक बार फिर ऐसा शो लेकर आया था,
जिसने दर्शकों की पसंद को गहराई से छू लिया था।
‘फियर फ़ाइल्स’ कई प्रोडक्शन कंपनियों के साझा प्रयास का नतीजा था,
जिनमें मुख्य रूप से कॉन्टिलो पिक्चर्स, एस्सेल विज़न प्रोडक्शंस, बोधि ट्री मल्टीमीडिया, ड्रीमज़ इमेजेज, बीबीसी इंडिया, और श्री जग्गनाथ एंटरटेनमेंट जैसी कंपनियाँ शामिल थीं।
यह शो भारत के अलग–अलग हिस्सों में घटित कुछ बेहद दिलचस्प और रहस्यमयी घटनाओं के पीछे की सच्चाई को उजागर करता था।
यह एक मनोरंजक, फिल्मी और ज़बरदस्त ड्रामा–डॉक्यूमेंट्री सीरीज़ थी,
जो उन लोगों की सच्ची कहानियों को जीवंत करती थी—जिन्होंने अलौकिक अनुभवों को खुद जिया था, और जिनकी व्याख्या करना लगभग असंभव लगता था।
यही कारण था कि हर उम्र का व्यक्ति इस शो को शौक़ से देखा करता था।
क्योंकि इसमें दिखाई जाने वाली कहानियाँ भारत के ही अलग–अलग इलाकों में घटित घटनाओं पर आधारित होती थीं,
जिससे दर्शकों को लगता था कि डर कहीं दूर नहीं, बल्कि हमारे आसपास ही मौजूद है।
ज़्यादातर लोग यह मानते थे कि ये कहानियाँ वास्तविक जीवन की घटनाओं और शहरी किंवदंतियों पर आधारित होती हैं,
जिन्हें टेलीविज़न के लिए थोड़ा फ़िल्मी और नाटकीय रूप दे दिया गया है।
और यही बात लोगों को सबसे ज़्यादा पसंद आती थी।
उन दिनों मैंने यह भी देखा था कि कई लोग इस शो के हर एपिसोड में सुनाई देने वाले मंत्र का उच्चारण
ठीक उसी अंदाज़ में किया करते थे, जैसा उस एपिसोड में सुनने को मिलता था।
यह सब कुछ वैसा ही था—
जैसे हम बचपन में ‘ज़ी हॉरर शो’ की शुरुआती डरावनी धुन को अक्सर गुनगुनाया करते थे।
‘ज़ी हॉरर शो’ से जुड़ी यादें मैंने सिर्फ़ आम लोगों से ही नहीं,
बल्कि कई सेलेब्रिटीज़ के मुँह से भी सुनी हैं।
हाल ही में श्रद्धा कपूर एक शो में बता रही थीं कि उनका भाई
बचपन में उन्हें ‘ज़ी हॉरर शो’ की धुन से अक्सर डराया करता था।
यह बताता है कि इन शोज़ ने किस तरह एक पूरी पीढ़ी की स्मृतियों में अपनी जगह बनाई थी।
लेकिन अगर सिर्फ़ ‘फियर फ़ाइल्स’ की बात करें,
तो यह कहना ग़लत नहीं होगा कि इस शो ने हॉरर जॉनर को एक नया आयाम दिया।
ख़ासकर इसलिए, क्योंकि शो के निर्माताओं और ज़ी टीवी का दावा था
कि यह धारावाहिक वास्तविक घटनाओं से प्रेरित है।
वैसे ‘फियर फ़ाइल्स’ जैसा ही एक शो,
जिसका नाम ‘ए हॉन्टिंग’ था,
डिस्कवरी चैनल पर इससे काफ़ी पहले आया करता था।
लेकिन वह शायद व्यापक दर्शक वर्ग तक नहीं पहुँच पाया था।
हो सकता है इसका कारण यह रहा हो कि
भारतीय दर्शक भारतीय चैनल ज़्यादा देखते हैं,
या फिर विदेशी घटनाओं पर आधारित डब किए गए शो
उन्हें उतने पसंद नहीं आए।
यह भी मुमकिन है कि किसी ने सोचा ही न हो
कि डिस्कवरी जैसे चैनल पर भी इस तरह का शो आ सकता है,
इसी कारण ज़्यादातर लोगों तक
उस शो की पहुँच नहीं बन पाई।
ख़ैर, उस शो को देखने वाले भी कम नहीं थे—
और मुझे तो वह शो सच में बेहद पसंद था।
‘फियर फ़ाइल्स’ काफ़ी लंबे समय तक टेलीविज़न पर छाया रहा।
मुझे ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि मैंने इसे
अपने घर के अलग–अलग माहौल में,
अलग–अलग लोगों के साथ देखा था।
कभी दोस्तों के साथ,
कभी भाई–बहनों के साथ,
कभी कज़िन्स के साथ,
तो कभी किसी और रिश्तेदार के साथ।
इस शो को देखने के लिए हमें ‘ज़ी हॉरर शो’ की तरह इंतज़ार नहीं करना पड़ता था।
शुरुआत में हम इसे टेलीविज़न पर देखते थे,
लेकिन बाद में कंप्यूटर और यूट्यूब ने
न विज्ञापनों की परेशानी छोड़ी,
न शो के ख़त्म होने का दुख।
एक ही रात में दो–तीन एपिसोड लगातार देख लेना
हमारी टीनएज की आदत बन चुका था।
आज भी वे दिन याद आते हैं
जब उन रातों को जादुई बनाने के लिए
हम अगले दिन सुबह से ही तैयारी में लग जाते थे।
कभी पानी–टिक्की बनती,
कभी बिरयानी,
तो कभी खिचड़ा।
और रात होते ही ‘फियर फ़ाइल्स’ लगाकर
उन्हीं स्वादिष्ट व्यंजनों का मज़ा लिया जाता था।
कभी–कभी माहौल इतना जादुई और खुशनुमा हो जाता था
कि उसे शब्दों में बाँध पाना मुश्किल है।
जैसे वह दृश्य—
जब मेरी बहन ‘फियर फ़ाइल्स’ देखते समय
मटर पुलाव खाने में इतनी मशगूल हो गई थी
कि एपिसोड के सबसे अहम पल पर भी
उसका ध्यान स्क्रीन पर नहीं था।
मैंने जब उससे कहा
कि “स्क्रीन पर भी ज़रा देख लो,
वरना कहानी समझ नहीं आएगी,”
तो वह हँसते हुए बोली—
“भाई, तुमने पुलाव ही इतना tasty बनाया है
कि जल्दी–जल्दी खाने का मन हो रहा है।”
दरअसल, ‘फियर फ़ाइल्स’ देखते समय
कमरे की लाइट हमेशा बंद ही रहती थी—
चाहे खाना खा रहे हों या नहीं।
इसलिए अगर पुलाव में खड़े मसाले
या टमाटर–हरी मिर्च अलग करनी होती,
तो प्लेट में सचमुच सिर घुसाना पड़ता था।
एक बार का क़िस्सा तो आज भी चेहरे पर मुस्कान ले आता है।
‘फियर फ़ाइल्स’ का एक एपिसोड काफ़ी डरावना हो गया था—
जो छलावा जैसी शक्तिशाली ताक़त पर आधारित था।
एपिसोड ख़त्म होने के बाद
हम सब एक–दूसरे से कह रहे थे
कि छत के ऊपर का गेट बंद कर आओ,
लेकिन कोई भी इसके लिए राज़ी नहीं हो रहा था।
डर का ऐसा माहौल बन गया था
कि उस रात सोने से पहले
कोई भी वह गेट बंद करने जाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था।
हँसी–मज़ाक के पल भी याद आते हैं।
एक बार एक शराबी लड़खड़ाता हुआ
हमारे घर के सामने वाले रास्ते से गुज़र रहा था।
तभी बाहर खड़े एक लड़के ने शरारत में
‘फियर फ़ाइल्स’ के एपिसोड में आने वाला मंत्र
उसके सामने पढ़ना शुरू कर दिया—
“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे
सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्
मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥”
वह शराबी जैसे ही कुछ बोलता,
दूसरा लड़का उसके सामने खड़ा होकर
फिर वही मंत्र पढ़ने लगता।
वह शराबी भी हद से ज़्यादा पिया हुआ था।
उसने बोतल को इस तरह पकड़ा हुआ था
कि ढक्कन गायब था,
और बोतल गिर न जाए,
इसके लिए उसने उसमें उँगली घुसाकर
उसे टेढ़ा कर रखा था।
जब–जब वह कुछ अनाप–शनाप बोलता,
कोई न कोई लड़का
हास्य भरे अंदाज़ में
फिर वही मंत्र दोहरा देता।
‘फियर फ़ाइल्स’ हमें उस दौर की याद दिलाता है
जब डर भी सामूहिक अनुभव हुआ करता था।
परिवार, दोस्त और रिश्तेदार
एक कमरे में बैठकर
उसे साथ–साथ जीते थे।
यह सिर्फ़ एक टीवी शो नहीं,
बल्कि बचपन और टीनएज की
उन यादों का हिस्सा है
जिनका रोमांच आज भी ज़िंदा है।
कुछ टीवी शो सिर्फ़ देखे नहीं जाते—
जिए जाते हैं।
‘फियर फ़ाइल्स’ भी ऐसा ही एक शो था,
जिसके साथ हमारी टीनएज की रातें
डर, दोस्ती और खाने की खुशबू से
भर जाया करती थीं।
सच कहूँ तो, ‘फियर फ़ाइल्स’ के बाद
अगर मैंने किसी शो को दिल से पसंद किया,
तो वह था— ‘काल भैरव रहस्य’।
मैं उसे हॉटस्टार पर देखा करता था।
वह हॉरर शो नहीं था,
लेकिन उसकी रहस्यमयी वाइब्स
कई हॉरर शोज़ से भी ज़्यादा असरदार थीं।
हर एपिसोड इतना रोमांचक और सस्पेंस से भरा होता था
कि पता ही नहीं चलता था
कब एपिसोड ख़त्म हो गया।
और जब ख़त्म होता,
तो बेहद बुरा लगता था—
क्योंकि वह हमेशा
किसी बड़े राज़ के खुलने से
ठीक पहले ही रुक जाता था।
एक समय ऐसा भी आया
जब मैं एक कज़िन की शादी में
करैरा गया हुआ था।
शादी निपटाकर जब लौटा,
तो ‘काल भैरव रहस्य’ के
करीब सात–आठ अनदेखे एपिसोड
जमा हो चुके थे।
जैसे ही मैं डबरा पहुँचा,
उसी रात मैंने अपने लिए
एक बड़ा सा कप चाय बनाई।
साथ में तली मूँगफली के साथ
पोहे भी बनाए,
दरवाज़ा बंद किया,
लाइट जलाई,
बिस्तर पर ही दस्तरख़्वान बिछाया,
रज़ाई ओढ़ी
और चाय–पोहे का मज़ा लेते हुए
एक–एक करके
सारे अनदेखे एपिसोड
देखता चला गया।
क़सम से,
वह अनुभव भी
उन अनुभवों में से था
जिन्हें शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।
ख़ैर, यह लेख तो ‘फियर फ़ाइल्स’ के लिए था,
लेकिन मैंने दूसरे शोज़ का ज़िक्र भी इसलिए किया,
क्योंकि उनके साथ भी
लगभग वही हुआ
जो ‘फियर फ़ाइल्स’ के साथ हुआ।
काफ़ी समय बाद
जब ‘काल भैरव रहस्य 2’ का नया सीज़न आया,
तो उसके एपिसोड
मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं आए।
वजह साफ़ थी—
उसे भी ज़रूरत से ज़्यादा डरावना बना दिया गया,
बिना किसी मज़बूत और रोचक कहानी के।
ठीक वैसा ही,
जैसा बाद के समय में
‘फियर फ़ाइल्स’ के कई एपिसोड्स में देखने को मिला।
और शायद यही कारण था
कि उसके बाद मैंने
टेलीविज़न की दुनिया को
काफ़ी समय के लिए अलविदा कह दिया।
आज जब कुछ देखने का मन होता है,
तो मैं कुछ पुराना ही लगा लेता हूँ।
आज के सीरियल्स देखने से बेहतर
मुझे ‘न्यूज़ इन द गेस्ट रूम’,
‘आप की अदालत’
और पॉडकास्ट जैसे कार्यक्रम
ज़्यादा पसंद आते हैं।







